ससुर- बहू की चरमसुख की दास्तान

लेकिन ऐसा नही हुआ, बहू रानी बोली- ससुर जी मैं तैयार हो कर आपके और मम्मी जी के लिए चाय बना देती हूँ|

मैने मुस्कुरा कर बहू रानी के कंधो पे हाथ फेरते हुए कहा- बहू रानी तू आराम से तैयार हो ले, हम वैसे सास – ससुर नही हैं, जो अपनी बहू पे हुकुम जमाए, तेरे पिताजी को ये ही बोल कर तुझे इस घर की बहू बनाया, की तू पहले हुमारी बेटी है बाद में बहू रानी है|

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बहू ये सुन कर बोहोत खुश हुई और उसे शायद मेरा ये स्पर्श उस पहली पानी की बूँद की तरह लगा, जो बरसो प्यासा रहने की बाद मिलती है| बहू की आँखें कुछ सेकेंड के लिए बंद हो गयी, जैसे ही मेरे हाथों का स्पर्श उसे अपने कंधो पर महसूस हुआ| मैं समझ गया की सुहाग रात अकेली जाने से, उसकी कामना भड़की हुई है, और उसके जिस्म का एक एक अंग तरस रहा है मर्द के स्पर्श के लिए|

मैं शुरू से खुले विचार रखता हूँ, और ये मानता हूँ, की कोई भी इंसान ग़लत नही होता, बस अलग होता है, उसकी परिस्थिति उसे वो बनाती है जो वो होता है| ये ही वजह है की मैने अपनी बीवी और बच्चों पे कभी अपने विचार, आचरण और आदर्शो को नही थोपा|

इसलिए, परिवार के सभी सद्स्य मुझसे खुल कर अपनी बात कर लेते हैं, ये ही कारण है, की मेरे बच्चे मेरे इतनी इज़्ज़त करते हैं|

मुझे पता था की मेरे बेटे की शादी की रात, शॉर्ट सर्किट हो जाने की वजह से वो अपनी सुहाग रात नही माना पाया, जिसका दुख और तड़प बहू की आँखों में झलक रही थी|

इसलिए अपने खुले स्वभाव के चलते, मैने बहू की आँखों में देखते हुए पास आ कर संवेदना से उसके हाथों में हाथ फेरते हुए बोल दिया- बहू कल रात में लाइट की प्राब्लम होने की वजह से तू अपनी सुहाग रात नही माना पाई ना? बहू मुझे तेरे दुख का एहसास है|

मेरी बात सुन कर, बहू रानी के चेहरे में दुख और तड़प दोनो सॉफ नज़र आ रही थी, और मेरे हाथ बहू के गोरे, मुलायम हाथों पे महसूस कर के अंजाने में उसकी आँखें बंद होने लगी और वो बोली – म्‍म्म्मम पापा जी, कितना ख़याल है आपको मेरा, हाँ ये तो रात के ३ बजे कमरे में आए, और आते ही साथ सो गये….

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मैने बहू के हाथों पे और हक से हाथ फेरते हुए कहा- बहू, मेरी और सभी परिवार की तरफ से माफी माँगता हूँ, क्यूंकी तू घर की लक्ष्मी है, अगर उसी की पहली रात अकेली जाए, तो यह अशुभ माना जाता है, लेकिन अगर तू दिल से माफ़ कर दे, तो इसका प्रभाव नही पड़ेगा|

ये बोलकर मैं बहू को प्यार और संवेदना से देखते हुए, हाथों पे हाथ फेरने लगा….

ऐसा लगा रहा था, की बहू मेरी बातों को सुन कम रही है और महसूस ज़्यादा कर रही है, शायद यह सुहाग रात सूनी जाने की वजह से उसकी कामना और तड़प उसे ऐसा करा रही थी|

बहू कुछ सेकेंड्स के लिए आँखें बंद कर के मेरी बातों में खो गयी, मैने फिर पूछा बहू के हाथों को ज़रा ज़ोर से पकड़ते हुए – बहू रानी कहाँ खो गयी?

बहू उस मदहोशी से निकल कर बोली – सस्स्सस्स ससुर जी मैं बोहोत किस्मत वाली हूँ की इस जैसे परिवार की बहू बनी और आप जैसे ससुर जी मिले, जिन्हे मेरे दुख और दर्द का इतना ख़याल है, माफ़ करने जैसे कोई बात ही नही है, ज़िंदगी में ये सब तो होता रहता है ससुर जी, लेकिन बोहोत किस्मत वाली बहू को आप जैसे ससुर मिलते है|

यह सुन कर मैं बहू की समझदारी, शब्दों की बारीक पकड़ और स्नेह से आकर्षित और खुश हुआ और तुरंत मुस्कुराते हुए बहू को गले लगा लिया|

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बहू का गोरा, गदरिया और मादक जिस्म मेरे अंग अंग में महसूस हो रहा था, ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो काम अग्नि को मैने अपनी बाहों में लिया हुआ है, उपर से बहू के सुहागन जिस्म की वो मादक, नशीली महक मेरे अंदर के मर्द को बेकाबू होने की संकेत दे रही थी, बहू के बड़े, सुडोल, गोरे स्तन उसकी तौलिए से मेरी छाती पे निरंतर महसूस हो रहे थे, मानो चिल्ला कर कह रहे हों – हूमें आज़ाद कर दो ससुर जी|

बहू भी आँख बंद कर के कुछ सेकेंड्स के लिए मुझसे गले लगी रही, शायद उसकी कामना भी काबू में हो रही थी मेरे मर्दानी स्पर्श और बाहों से…

मैं जनता था की बहू की सूनी सुहगरात की वजह से बहू रानी की कामना उफान पे है, लेकिन जल्दबाज़ी कर के मैं बहू को खोना नही चाहता था, इसीलिए मैने खुद बहू को अलग किया और मुस्कुरा कर देखने लगा|

कुछ देर बाद, परिवार की परंपरा के अनुसार, जहाँ घर की नयी बहू, सब के लिए कुछ मीठा बनाकर दिन की शुरआत करती है, बहू रानी गाजर का हलुआ बनाकर डिनर टेबल पे लाई और हम सभी को बारी बारी परोसने लगी, जब मुझे परोस रही थी तभी मैं अपनी बाई तरफ मुड़ा जिस वजह से मेरा हाथ बहू के मुलायम पेट पे छू गया. जिसे चू कर ऐसा लगा की मानो बहू का पेट योवन अग्नि उगल रहा हो|

बहू की धीमी सिसकी निकल गयी- उफफफफ्फ़…..

मैने तुरंत कहा- बहू रानी ग़लती से हो गया, माफ़ करना, बहू बोली – कोई बात नही ससुर जी हो जाता है, आपकी ग़लती नही थी, मैं आ गयी अचानक परोसने|

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