प्रेम मिलन

हमने दो तीन बार फोन सेक्स भी किया। अब हम दोनों एक दूसरे में समाने को बेकरार थे तो हमने एक होटल में मिलने का प्रोग्राम बनाया। और फिर एक दिन हम दोनों ने कालेज से बंक मारकर एक होटल में एक कमरा बुक कराया और कमरे में गये।

कमरे में जाते ही मैंने दरवाज़ा बन्द किया और उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। उसने भी अपने हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया। मेरा बायाँ हाथ उसके नितम्बों पर था और दायाँ उसकी पीठ पर। उसकी आँखों में लाल डोरे खिंच गये और उनमें नशा सा उतर आया था और मैं जितना उनमें देखता, उतना ही नशा मुझ पर भी चढ़ रहा था।

और फिर हमारे होंठ एकदम से पास आये और मैंने उसके ऊपर के होंठ को अपने होठों से दबा लिया, उसने मेरे निचले होंठ को! हमारी साँसें मिल गई, फिर हमारी जीभ मिली, अब मेरे दाँये हाथ ने उसकी पीठ से हठकर उसके गर्दन के ऊपर के बालों को जकड़ लिया।

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हमारी साँसें मिली, हमारी खुशबू मिली, हम एक दूसरे को पी जाना चाहते थे। मैं उस समय ना जाने कौन सी दुनिया में था जहाँ सिर्फ़ वो थी और मैं। यह हमारा पहला चुम्बन था। यह कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट ऑर्ग पर पढ़ रहे हैं !

फिर मैं उसके चेहरे, गर्दन, छाती पे पागलों की तरह चूमने लगा और वो आँखें बन्द करे आहें भर रही थी। फिर मैंने उसका टाप और जींस उतार दिया और उसे बेड पर बिठा दिया। उसने शर्म के मारे अपना मुँह अपने हाथों से ढक लिया।

क्या बताऊ सिर्फ़ ब्रा-पैन्टी में वो क्या लग रही थी। मैंने भी निक्कर को छोड़ कर अपने सारे कपड़े उतार दिये। अब मैं बेड पर गया और उसे वापस अपनी बाँहों में जकड़ लिया, उसे चूमने लगा, ब्रा के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबाने और चूमने लगा।

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उसके बगलों से आती डियो और पसीने की मिली-जुली खुशबू मुझे पागल कर रही थी। अब मैंने उसकी ब्रा को निकाल फेंका, गोरे-गोरे स्तनों पे पाँच के सिक्के के आकार के कत्थई चूचक, मैंने उन्हें खूब चूसा और दबाया। वो सिसकारियाँ ले रही थी और कह रही थी- ऐसे ही… आहहह… मेरे राजाऽऽऽ… आज मुझे पूरा रगड़ दे रे… हाय…!

उसकी आवाज़ें सुनकर मैं और उत्तेजित हो रहा था। अब मैंने उसकी पैंटी भी खींच दी, वो बोली- जल्दी कुछ करो ना… आहहह… अब बर्दाश्त नहीं होता! ‘अभी लो मेरी रानीईईईईई… तुम्हें निहाल किये देता हूँ।’ जब मैंने उसकी लाडो को देखा, वो एकदम चिकनी थी, फ़ूली हुई सी, कोई ढाई तीन इन्च का चीरा होगा।

मैंने उसकी लाडो को अपनी उँगलियों से चौड़ा किया और सूँघा, बड़ी ही मादक सुगन्ध थी। अब मैंने उसकी लाडो को ऐसे चूमा जैसे उसके होंठों को चूमा था, वो तो ‘आहहहहईई…’ की आवाज़ के साथ उछल ही पड़ी। अब मेरा सब्र खत्म हो चुका था, मैंने अपने हथियार पर और उसकी लाडो पर खूब सा थूक लगाया और उसकी लाडो को चौड़ा करके अपना लिंग उस पर रख कर दबाव बढ़ाने लगा।

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वो बेड पर लेटी हुई थी और मैं घुटनों के बल था। वो बोली- आराम से, मेरा पहली बार है। उसके चहरे पर अब दर्द के भाव साफ दिख रहे थे। मैं बोला- बस थोड़ा और मेरी मेनिका! सच कहूँ तो मुझे भी उस समय थोड़ी तकलीफ हो रही थी। मैंने उसे चूमा और उसके स्तनों का मर्दन करते हुए अपने लिंग को धीमे-धीमे अन्दर-बाहर करने लगा, फिर मैंने एक दो धक्के तेज़ लगाये।

अब मेर लिंग पूरा अन्दर चला गया। उसकी एकदम से चीख निकल ग- ऊईईई… मर गईईई…रेएए! अब मैंने धक्के रोक कर उसके होंठों पर चूमना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद मैंने फिर से धक्के लगाना शुरु कर दिया, अब वो भी सिसकारियाँ लेने लगी और कमर उछालने लगी।

पहली बार की उत्तेजना में मैं दो-तीन मिनट में ही झड़ गया और मेरे झड़ते ही उसकी योनि ने भी मेरे लिंग को जकड़ लिया और प्रेम के आँसू बहाने लगी। मैं हाँफते हुए उसके ऊपर गिर पड़ा। हम दोनों पसीने से सराबोर हो चुके थे। मैंने उसे अपनी बाहों में भरा और उलटा हो गया इस तरह वो मेरे ऊपर आ गई।

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इसी बीच मेरा लिंग भी फिसलकर उसकी योनि से बाहर आ गया। उसके स्तन और चेहरा मेरी छाती पे थे, मेरे हाथ उसकी कमर पे, उसके पैर मेरे पैरों से साँप की तरह लिपटे थे। उसके हाथों ने मेरे कंधों को पीछे की तरफ़ से पकड़ा हुआ था। क्या गज़ब का एहसास था, ऐसी ही अवस्था में हम दोनों सो गये।

मेरी ज़िन्दगी की सबसे अच्छी नींद थी वो। आधे घन्टे बाद हम सोकर उठे, फिर से वही खेल खेला, पर इस बार खेल काफ़ी लम्बा चला। हमने उस दिन कई अलग-अलग अवस्थाओं में प्रेम किया।

उस दिन उसने मेरा लिंग ना चूसा और ना गुदामैथुन करने दिया, पर मैंने उसे इसके लिये बाद में मना लिया। खैर वो कहानी फिर कभी। उस दिन के बाद से हमें जब भी मौका मिलता, हम प्रेम किया करते थे।

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हमारा सम्बन्ध दो साल चला, उसके बाद उसने किसी और से शादी कर ली, ऐसा क्यूँ हुआ, वो भी फिर कभी बताऊँगा।