फिर मैंने बानू की कमीज़ उतारी..
तो वो बोली- भाईजान… मेरा तो खुद बड़ा दिल करता था कि घर में बगैर कपड़ों के ही फिरूँ… शुक्र है अम्मी-अब्बा गए हैं.. अब तो मैं अपनी यह इच्छा भी पूरी कर लूँगी..
अब बानू मेरे सामने सिर्फ़ एक काले रंग की चिंदी सी ब्रा में खड़ी थी और उसने नीचे से सलवार पहनी हुई थी।
मैंने फ़ौरन उसके मम्मों पर हाथ डाला और दोनों हाथों से उसके मम्मे दबाने लगा… नींबू की तरह निचोड़ने लगा।
बानू की तो जैसे जान ही निकल गई और उस ने मुँह ऊपर को कर लिया और कामुक आवाजें निकालने लगी।
‘आअहह… भाईजानआ… उफफ्फ़…आराअम से खेलो ओहह.. .. तुम्हारे ही हैं यह…आअहह…’
वो तो मज़े से सराबोर हो गई थी… फिर मैंने उसको दुबारा चुम्मी की…
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एक हाथ से उसके मम्मे दबाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया और सलवार को खोल कर नीचे सरका दिया…
जब मेरा हाथ उस की टाँगों के बीच में गया तो मेरी खुशी की इन्तेहा नहीं रही…
क्योंकि बानू ने नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ था और उसकी फुद्दी पर थोड़े-थोड़े बाल आ चुके थे।
मैं ज़रा पीछे हटा… ताकि उसकी चिकनी और टाइट फुद्दी का नज़ारा कर सकूँ।
वाहह… क्या छोटी सी… फुद्दी थी मेरी प्यारी बहना की..
बानू ने भी अपनी टांगें खोल लीं और डीपफ़्रीज़र के साथ सट कर खड़ी हो गई…
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और बोली- भाईजान आज जितना खेलना है खेल लो.. आज की रात तो यह सिर्फ़ तुम्हारी है… जो करना ही कर लो… बस मुझे इतना प्यार करो… कि ये वक्त कभी भुला ना सकूँ.. अपने प्यारे भाईजान को।
वो मेरी बाँहों पर हाथ फेर रही थी… मैं नीचे बैठ गया… और एक हाथ से उसकी फुद्दी के होंठों खोले और एक ऊँगली बीच में फेरी… तो उसने अपनी टांगें अकड़ा लीं…
जैसे उसको करेंट लग गया हो।
फिर मैं उसकी चूत के ज़रा और करीब हुआ और अपने अंगूठे से उसकी फुद्दी रगड़ने लगा।
बानू के मुँह से ‘सी..उए.. सीई.. आआआह..’ की आवाजें निकल रही थीं।
मैं तो तजुर्बेदार बंदा था… मुझे मालूम था कि यहीं से तो हर लड़की को काबू किया जाता है।
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फिर मैंने उसको एक चुम्बन किया उसकी फुद्दी पर… और बिल्कुल उसकी फुद्दी के होंठों के बीच में हल्का-हल्का चाटने लगा।
मेरा दूसरा हाथ उसकी एक ऊँगली उसकी गाण्ड में घुसने की कोशिश कर रही थी।
अब मैं उस की टाँगों के बिल्कुल बीच में बैठा और बड़े मज़े से चूत चाटने लगा।
बानू कसमसा रही थी… मैंने उसकी टाँगों के इर्द-गिर्द अपने मज़बूत हाथों का घेरा डाला हुआ था.. जो पीछे से होते हुए उसकी गाण्ड पर कसावट डाल रहे थे।
वो बिल्कुल फंसी हुई थी और मज़े से पागल हो रही थी।
‘उफ़फ्फ़.. भाईजानअ…बस..बस… भाईजानआ… आअहह…मैं छूटने वाली हूँ…आआहह ..ह .. में मर गई…आआहह…’ और एकदम उसकी चूत छूट गई… और वो ठंडी पड़ गई।
वो मेरी तरफ प्यार से देखते हुए मेरा मुँह अपने हाथों में लेते हुए बोली- भाईजान… तुम दुनिया के सब से अच्छे भाईजान हो…जो मुझे ज़िंदगी के इतने मज़े देते हो तेरी मेरी स्टोरी के… जिसकी तमन्ना दुनिया की आधी लड़कियाँ सिर्फ़ ख्वाब ही देखती हैं…
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मैं खड़ा हुआ और बोला- बानू.. मेरी प्यारी बहना… अब मेरा नम्बर?
मैं मुस्कराते हुए उसको देखने लगा…
तो वो मुझसे लिपट गई और बोली- भाईजान… मैं तो खुद तुम्हारी हो गई हूँ…पूरी की पूरी…
मैं उसको पीछे हटाते हुए बोला- बानू तेरी फुद्दी तो मैं रात को लूँगा… अभी तो मुझे तेरी गाण्ड का मज़ा लेना है… आज बड़ा दिल कर रहा है तेरी छोटी सी नरम-नरम गाण्ड में अपना लंबा लंड डालने का…
मैं उसकी गाण्ड को दबाता हुआ बोला।
वो मुझसे अलग होते हुए बोली- नहीं भाईजान… गाण्ड नहीं…मैंने आज तक गाण्ड में कुछ नहीं डाला है… अभी जब तुम अपनी ऊँगली डालने की कोशिश कर रहे थे… तो बहुत दर्द हो रहा था… तुम्हारा इतना मोटा लंबा लौड़ा कैसे जाएगा?
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