गुसलखाने का बंद दरवाज़ा खोला-6

मैंने तभी अपने लिंग को थोड़ा बाहर खींच कर अंदर धकेला तो वह उसके गर्भाशय से टकराया!

तब उसकी योनि के अंदर हुई गुदगुदी और हलचल से उत्तेजित हो कर उसने एक सिसकारी ली और मुझसे चिपट गई! उसके सख्त स्तन और उनके ऊपर खड़ी चुचूक मेरी छाती में चुभने लगी तथा मुझे भी उत्तेजित करने लगी!

मुझसे चिपटी नेहा ने मेरे होंटों को चूमा फिर मेरे कान के पास अपना मुँह लेजा कर मेरे कान के नीचे के भाग को मुँह में ले कर हल्का सा काट लिया!

दर्द के कारण मेरे द्वारा सी… सी… करने पर वह बोली- मेरे हल्का सा काटने पर तो थोड़ी सी दर्द हुई होगी और तुम अभी से ही सी.. सी.. कर रहे हो और अगर मैं तुम्हें उतना ही दर्द देती जितना तुमने मुझे दिया है तब तो तुम चिल्ला चिल्ला कर आसमान ही सिर पर उठा लेते?

उसकी बात का उत्तर देते हुए मैंने कहा- अगर तुम्हें बहुत दर्द दिया है तो आनन्द और संतुष्टि भी तो मैं ही दूंगा! यह कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट ऑर्ग पर पढ़ रहे हैं !

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नेहा ने तुरंत मेरे कान में बहुत ही मादक स्वर में फुसफसाया- फिर देते क्यों नहीं?

मैं तो उसी आनन्द और संतुष्टि की प्रतीक्षा में हूँ।

उसकी बात सुनते ही मैंने उसके मुँह और स्तनों को चूम लिया और उसकी चुचूक को चूसते हुए हिलना शुरू कर दिय्।

मैं अहिस्ता अहिस्ता अपने लिंग तो उसकी योनि से बाहर निकलता और फिर अंदर धकेल देता।

उसकी संकीर्ण योनि में मेरा लिंग फस कर अंदर बाहर हो रहा था और नेहा की योनि में हो रही हर कम्पन एवं सिकुड़न मुझे महसूस हो रही थी।

मेरे हर धक्के पर वह आह्ह… आह्ह… करती और उसकी योनि के अन्दर एक लहर आती जो मेरे लिंग को जकड़ लेत॥

उस जकड़न के कारण जब मैं हिलता तो नेहा की योनि के अन्दर और मेरे लिंग को बहुत ही ज़बरदस्त रगड़ लगती थी।

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उस रगड़ से उत्पन गुदगुदी और हलचल से दोनों की सिसकारियाँ निकल जाती थी और वह हमारी वासना के उन्माद को प्रतिकाष्ठा की ओर ले जाता।

दस मिनट के बाद नेहा ने एक बार फिर अपने मधुर और मादक स्वर में फिर फुसफसाया- रवि तुम सवारी तो एक फेरारी पर कर रहे हो लेकिन उसे एक बैलगाड़ी की तरह हाँक रहे हो! इस तरह तो हमें पूरी रात लग जायेगी अपनी आनन्द और संतुष्टि की मंजिल तक पहुँचने में! अगर तुम इसे तेज़ नहीं चला सकते तो इसकी लगाम मुझे दे दो और फिर देखो यह कैसे फराटे मारती है!

नेहा की बात सुन कर मेरे अहम् को चोट पहुँची थी इसलिए मैंने अपने लिंग को उसकी योनि के अन्दर बाहर करने की गति को तेज़ कर दिया।

अब नेहा की योनि में मेरे लिंग की रगड़ तेज़ी से लगने लगी थी और उसकी सिसकारियाँ भी तेज़ हो गई थी।

पांच मिनट के बाद नेहा का शरीर थोड़ा ऐंठ गया और उसने ‘मैं गई.. गई.. गईईईई…’ कहते हुए एक लम्बी सिसकारी ली और इसके साथ ही उसकी योनि से रस सख्लित हो गया!

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उस रस संखलन के कारण उसकी योनि में हुए स्नेहन से मुझे अपने लिंग को तेज़ी से उसकी योनि में अन्दर बाहर करने में बहुत सुविधा हो गई!

नेहा को भी अब आनन्द आने लगा था और वह मेरे हर धक्के पर सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ ऊपर उठा कर योनि के अंदर जाते हुए लिंग का स्वागत करती!

जैसे जैसे मेरी गति तेज़ होती जाती वैसे ही वह भी अपनी गति को तेज़ कर रही थी!

लगभग तेज़ गति में सम्भोग करते हुए दस मिनट ही हुए थे की एक बार फिर नेहा ने ‘मैं गई.. गई.. गईईईई…’ कहते हुए एक लम्बी सिसकारी ली और उसकी योनि ने एक बार फिर रस सखलित कर दिया!

अब उसकी योनि में इतना स्नेहन हो गया था कि मेरे हर धक्के पर उसकी योनि से ‘फच.. फच..’ का स्वर निकलने लगा था! इस ‘फच.. फच..’ के स्वर को सुन कर हम दोनों की उत्तेजना में अत्यंत वृद्धि हो गई और हमारी यौन संसर्ग की गति में अत्यधिक तेज़ी आ गई।

मैं रेस में सरपट दौड़ रहे एक घोड़े की तरह नेहा की योनि में अपने लिंग के धक्के लगा रहा था और उधर नेहा उन धक्कों का उछल उछल कर उत्तर दे रही थी!

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अभी इस अत्यधिक तेज़ यौन संसर्ग को दस मिनट ही हुए थे कि मुझे अनुभूति हुई की मेरे लिंग से वीर्य सखलन होने वाला है तब मैंने नेहा से पूछा- नेहा, मेरा वीर्य रस निकलने वाला है इसलिए बताओ कि मैं उसे तुम्हारी योनि के अन्दर ही निकाल दूँ या बाहर निकालूँ?

नेहा ने उत्तर दिया- रवि, तुम अपना सारा वीर्य रस मेरी योनि के अन्दर ही निकलना! मैं नहीं चाहती कि इस उन्माद के समय तुम अपने लिंग को कुछ क्षणों के लिए भी मेरी योनि से बाहर निकालो! लेकिन थोड़ा रुको क्योंकि मेरा योनि रस भी निकलने वाला है और मैं चाहती हूँ कि जब मेरा योनि रस निकले तभी तुम भी अपना रस निकालो।

मैंने कहा- जो हुकुम, मेरी सरकार।

फिर मैं नेहा के होंठों और चुचूकों को चूसते हुए अपने लिंग को उसकी की योनि की गहराइयों में धकेलने लगा तथा बहुत ही तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

नेहा भी उसी तेज़ी से सिसकारियाँ लेती हुई मेरे हर धक्के का उत्तर अपने कूल्हों को उचका उचका कर देती और बड़े प्यार से मेरे लिंग का योनि के अंदर स्वागत करती।

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लगभग पन्द्रह से बीस धक्कों के बाद नेहा अत्यंत ही ऊँचे स्वर में चिल्लाते हुए सिसकारी ली और उसका शरीर ऐंठने लगा!

उसकी टाँगें अकड़ गई, साँसें अत्यन्त तेज़ हो गई और वह हाँफते हुए कांपते स्वर में कहने लगी- उईई.. माँ…. मैं गई.. गई.. गई.. इसके साथ ही उसकी योनि के अंदर बहुत ही तीव्र सिकुड़न हुई तथा उसकी सिकुड़ती हुई योनि ने मेरे फूले हुए लिंग को जकड़ लिया और उसे अन्दर की ओर खींचने लगी!

जब मुझे लिंग को उसकी योनि के अंदर बाहर करने में अड़चन आने लगी तब मैंने अत्याधिक जोर लगा कर तेज़ी से धक्के लगाये।